नमस्ते मेरे प्यारे पाठकों! आप जानते ही हैं कि शिक्षा किसी भी देश के भविष्य की नींव होती है और हर बच्चे का अधिकार है। आज हम एक ऐसे ही महत्वपूर्ण और प्रेरक विषय पर बात करेंगे – ज़ाम्बिया में प्राथमिक शिक्षा का वर्तमान स्वरूप और इसके भविष्य की संभावनाएँ। सोचिए, छोटे-छोटे बच्चों के लिए स्कूल जाना कितना ज़रूरी है, पर क्या आप जानते हैं कि ज़ाम्बिया जैसे देशों में इस दिशा में कितनी मेहनत और संघर्ष है?
मैंने खुद अपनी रिसर्च के दौरान देखा है कि कैसे वहाँ सरकार, स्थानीय समुदाय और कई संगठन मिलकर बच्चों को बेहतर भविष्य देने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। शिक्षा तक सबकी पहुँच हो, अनुभवी शिक्षक हर स्कूल में उपलब्ध हों, और पढ़ाई की गुणवत्ता भी शानदार हो – ये कुछ ऐसी बातें हैं जिन पर ज़ाम्बिया आज भी काम कर रहा है। हाल के वर्षों में, कोविड-19 जैसी वैश्विक चुनौतियों ने भी यहाँ शिक्षा प्रणाली को काफी प्रभावित किया है, लेकिन मुझे लगता है कि इन सब के बावजूद, भविष्य में डिजिटल शिक्षा और कौशल विकास पर ज़ोर देने से ज़ाम्बियाई बच्चों के लिए एक नई उम्मीद की किरण जग सकती है। यह सिर्फ़ बच्चों के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के समग्र विकास के लिए बेहद ज़रूरी है। तो आइए, इस यात्रा में मेरे साथ जुड़िए और जानते हैं ज़ाम्बिया की प्राथमिक शिक्षा की पूरी कहानी!
वाह! नमस्ते दोस्तों, कैसे हैं आप सब? मुझे पता है आप सब ज़ाम्बिया की प्राथमिक शिक्षा के बारे में जानने के लिए उत्सुक हैं, और क्यों न हों!
शिक्षा ही तो है जो किसी भी समाज की दिशा तय करती है. मैंने अपनी रिसर्च में जो देखा और समझा है, वह वाकई आँखें खोलने वाला है. ज़ाम्बिया ने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत कुछ किया है, लेकिन चुनौतियाँ अभी भी बहुत हैं.
चलिए, बिना देर किए, हम इस यात्रा को शुरू करते हैं!
सबके लिए शिक्षा: राह आसान नहीं

ज़ाम्बिया में ‘शिक्षा सबके लिए’ नीति ने वाकई बहुत बदलाव लाए हैं. 2018 में प्राथमिक स्तर पर और 2021 में प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा (ECE) तथा माध्यमिक विद्यालयों तक इसे बढ़ाया गया.
राष्ट्रपति हाकइंडे हिचिलेमा इस दिशा में काफी प्रतिबद्ध हैं, और उनके प्रयासों को अक्टूबर 2023 में ADEA सम्मेलन में भी सराहा गया, जहाँ उन्हें फ़ाउंडेशनल लर्निंग के चैंपियन के रूप में नामित किया गया.
इन नीतियों का मक़सद शिक्षा तक पहुँच की बाधाओं को दूर करना है, ताकि हर बच्चे को सीखने का अधिकार मिले. मुझे याद है, एक बार मैं एक छोटे से गाँव में थी, जहाँ बच्चे कई किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल आते थे.
सरकार की कोशिशें रंग ला रही हैं, ज़्यादा बच्चे स्कूल पहुँच पा रहे हैं, पर अभी भी बहुत काम बाकी है. खासकर ग्रामीण इलाकों में, जहाँ स्कूल जाना अपने आप में एक संघर्ष होता है.
कई बार संसाधनों की कमी या घर की आर्थिक स्थिति भी बच्चों को स्कूल से दूर रखती है, और यह देखकर दिल को थोड़ा दुख तो होता ही है.
प्रारंभिक शिक्षा की नींव
मुझे लगता है, किसी भी इमारत की नींव जितनी मज़बूत होगी, इमारत उतनी ही ऊँची और टिकाऊ बनेगी. शिक्षा के साथ भी ऐसा ही है. प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा (Early Childhood Education – ECE) तक पहुँच अभी भी चिंताजनक रूप से कम है, जहाँ 35% से भी कम बच्चे ग्रेड 1 में प्रवेश करने से पहले औपचारिक प्री-प्राइमरी शिक्षा का अनुभव कर पाते हैं.
इसका सीधा असर यह होता है कि कई बच्चे प्राथमिक विद्यालय में देरी से दाखिला लेते हैं. सालों से इस क्षेत्र में निवेश की कमी रही है, खासकर ईसीई में, जो सबसे कम संसाधनों वाला क्षेत्र है.
0-6 वर्ष की आयु के बच्चों पर प्रति व्यक्ति खर्च बड़े बच्चों की तुलना में पाँच गुना कम है. मुझे लगता है कि इस पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि अगर शुरुआत ही कमज़ोर होगी, तो आगे चलकर बच्चों को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा, आप सोच सकते हैं.
गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा के लिए योग्य शिक्षकों की कमी, उच्च छात्र-शिक्षक अनुपात, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और शिक्षण सामग्री की कमी जैसी समस्याएँ आज भी बनी हुई हैं.
स्कूलों तक पहुँच और नामांकन में चुनौतियाँ
ज़ाम्बिया में प्राथमिक शिक्षा में नामांकन दर लगभग 91 प्रतिशत है, जो एक अच्छी संख्या है. लेकिन सिर्फ़ नामांकन ही काफ़ी नहीं है, बच्चों का स्कूल में टिके रहना और अच्छी शिक्षा प्राप्त करना भी उतना ही ज़रूरी है.
यूनिसेफ ने प्राथमिक से माध्यमिक विद्यालय में संक्रमण दरों में ठहराव के कई संभावित कारण बताए हैं, जिनमें स्कूल में सीटों की कमी, वित्तीय बाधाएँ, अपर्याप्त मासिक धर्म स्वच्छता सुविधाएँ, किशोरावस्था में गर्भधारण और बाल विवाह शामिल हैं.
मुझे याद है, एक लड़की से मेरी बात हुई थी, जो स्कूल छोड़ना चाहती थी क्योंकि उसके परिवार के पास फीस भरने के पैसे नहीं थे. ऐसे में सरकारी नीतियों और सामुदायिक सहयोग की भूमिका बहुत बढ़ जाती है.
खासकर ग्रामीण इलाकों में, जहाँ लड़कियों के लिए शिक्षा जारी रखना और भी मुश्किल हो जाता है. इन सब पर काम करना बहुत ज़रूरी है ताकि कोई भी बच्चा, खासकर लड़कियाँ, शिक्षा से वंचित न रहें.
शिक्षण की गुणवत्ता और शिक्षकों का संघर्ष
शिक्षा की गुणवत्ता एक ऐसा मुद्दा है जिस पर लगातार ध्यान देने की ज़रूरत है. मुझे खुद लगा है कि अगर कक्षा में पढ़ाने वाला शिक्षक योग्य और प्रेरित न हो, तो बच्चों का मन पढ़ाई में कैसे लगेगा?
ज़ाम्बिया में सीखने वाले छात्र अक्सर न्यूनतम पास अंक (40%) प्राप्त करने में संघर्ष करते हैं. ग्रेड 2 में, केवल 4% छात्र सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम पढ़ने की दक्षता हासिल कर पाते हैं, जो पहले 8% थी.
ग्रेड 5 के छात्रों के लिए, अंग्रेजी में औसत अंक 34.97% और गणित में 31.07% हैं, जिसमें केवल 8.7% और 5.4% छात्र ही वांछित दक्षता स्तर तक पहुँच पाते हैं.
ये आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ़ स्कूल खोलना काफ़ी नहीं है, बल्कि वहाँ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना भी उतना ही ज़रूरी है. मुझे लगता है कि शिक्षकों की ट्रेनिंग और उन्हें लगातार सहायता देना बहुत ज़रूरी है.
योग्य शिक्षकों की कमी: एक बड़ी समस्या
जहाँ तक शिक्षकों की बात है, ज़ाम्बिया के शिक्षा मंत्री डगलस स्यकालिया ने स्वीकार किया है कि शिक्षकों की कमी एक बड़ी चुनौती है. ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के प्राथमिक विद्यालयों में बड़ी संख्या में शिक्षक या तो पूरी तरह से प्रशिक्षित नहीं हैं या योग्य नहीं हैं.
इसका असर शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ता है, क्योंकि कई बार शिक्षक उन विषयों को भी प्रभावी ढंग से नहीं पढ़ा पाते, जिन्हें वे खुद पूरी तरह से नहीं समझते. 2006 की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि बेसिक स्तर (ग्रेड 1-7) पर शिक्षकों की आपूर्ति ज़रूरत से ज़्यादा थी, लेकिन अपर बेसिक (ग्रेड 8-9) और हाई स्कूल स्तर पर शिक्षकों की भारी कमी थी.
मुझे लगता है, यह सिर्फ संख्या का खेल नहीं है, बल्कि सही जगह पर सही योग्यता वाले शिक्षकों का होना ज़रूरी है. सरकार 2022 में यूनेस्को के समर्थन से एक व्यापक शिक्षक नीति विकसित करने की दिशा में काम कर रही है ताकि योग्य शिक्षकों को आकर्षित किया जा सके, विकसित किया जा सके और उन्हें बनाए रखा जा सके.
सीखने की सामग्री और बुनियादी ढाँचे का अभाव
ज़ाम्बिया के अधिकांश स्कूलों में बच्चों को शिक्षा के लिए पर्याप्त शैक्षिक सामग्री, जैसे किताबें, रूलर, नक्शे और चार्ट उपलब्ध नहीं हैं. कारमोडी (2004) के अनुसार, “संसाधनों के बिना शिक्षा भविष्य के बिना शिक्षा के समान है.” यह बात मुझे बहुत सही लगती है.
मैंने खुद देखा है कि जब बच्चों के पास अच्छी किताबें या सीखने की सामग्री नहीं होती, तो वे कैसे संघर्ष करते हैं. ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में ज़ाम्बिया की शिक्षा प्रणाली के स्तर में सुधार के लिए पुस्तकों और अन्य शैक्षिक सामग्रियों की खरीद में सुधार करने की आवश्यकता है.
इसके अलावा, स्कूलों में पर्याप्त बुनियादी ढाँचे की कमी भी एक बड़ी समस्या है. कई बच्चे स्कूल नहीं जा पाते क्योंकि स्कूल बहुत दूर होते हैं. स्वच्छता सुविधाओं, बिजली और इंटरनेट जैसी बुनियादी ज़रूरतों का अभाव भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में बाधा डालता है.
डिजिटल क्रांति और भविष्य की उम्मीद
अभी के दौर में, डिजिटल शिक्षा एक बहुत बड़ी उम्मीद की किरण बनकर उभरी है. खासकर कोविड-19 महामारी के बाद, जब स्कूलों को बंद करना पड़ा, तो ऑनलाइन शिक्षा का महत्व सबने समझा.
ज़ाम्बिया ने भी डिजिटल भविष्य की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. 2024 तक, लगभग 11.4 मिलियन लोग सक्रिय इंटरनेट ग्राहक बन गए हैं, और मोबाइल ब्रॉडबैंड नेटवर्क के विस्तार तथा इंटरनेट सेवाओं की बढ़ती सामर्थ्य ने इसमें प्रमुख भूमिका निभाई है.
मुझे लगता है, यह बहुत ज़रूरी है कि हम इस डिजिटल बदलाव को गले लगाएँ, लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित करें कि कोई बच्चा पीछे न छूटे.
डिजिटल शिक्षा के बढ़ते कदम
शिक्षा मंत्रालय ने यूनेस्को, यूनिसेफ और माइक्रोसॉफ्ट के सहयोग से ‘डिजिटल लर्निंग पासपोर्ट’ प्लेटफॉर्म विकसित किया है, जो ज़ाम्बिया में शिक्षा को, खासकर दूरदराज के इलाकों के छात्रों के लिए, काफी बेहतर बना रहा है.
यह प्लेटफॉर्म इंटरैक्टिव पाठ, ऑडियो-वीडियो सामग्री और डिजिटलकृत पाठ्यक्रम-आधारित सामग्री की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करता है. इसके अलावा, ‘डिजिटल करिकुलम कंटेंट डेवलपमेंट’ परियोजना भी चल रही है, जिसका उद्देश्य मौजूदा माध्यमिक विद्यालय शिक्षण सामग्री को डिजिटाइज़ करके शिक्षा सामग्री तक पहुँच बढ़ाना है.
मेरा मानना है कि ये पहलें बच्चों के लिए सीखने को ज़्यादा मज़ेदार और सुलभ बना सकती हैं. एडटेक (EdTech) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को भी शिक्षा के भविष्य के केंद्रीय स्तंभों के रूप में देखा जा रहा है, जिससे शिक्षकों का बोझ कम हो और छात्रों को व्यक्तिगत सहायता मिल सके.
ग्रामीण-शहरी डिजिटल विभाजन को पाटना
हालांकि, डिजिटल डिवाइड एक बड़ी चुनौती है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में और महिलाओं व लड़कियों को असमान रूप से प्रभावित करता है. 2023 की शुरुआत में, ज़ाम्बिया में लगभग 47% आबादी डिजिटल रूप से शामिल नहीं थी, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में 56% और महिलाओं में 34% का डिजिटल विभाजन था.
इंटरनेट तक पहुँच की कमी, उपकरणों का अभाव और डिजिटल साक्षरता की कमी, ग्रामीण बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा के अवसरों से वंचित कर सकती है. मुझे लगता है कि सरकार और निजी संगठनों को मिलकर काम करना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि डिजिटल शिक्षा का लाभ सभी तक पहुँचे, न कि केवल शहरों तक सीमित रहे.
‘वीवीओबी ज़ाम्बिया’ जैसी संस्थाएँ ‘डिजिटल स्कूल प्रोजेक्ट’ के माध्यम से स्कूल छोड़ चुके किशोरों को शिक्षा तक पहुँच प्रदान करने में मदद कर रही हैं, जो टेक्नोलॉजी-सक्षम मॉडल का उपयोग करके ग्रेड 7 की परीक्षाओं की तैयारी कराते हैं.
कोविड-19 का शिक्षा पर गहरा असर
कोविड-19 महामारी ने दुनिया भर की शिक्षा प्रणालियों पर गहरा प्रभाव डाला, और ज़ाम्बिया भी इससे अछूता नहीं रहा. स्कूलों के बंद होने से बच्चों की पढ़ाई में भारी व्यवधान आया, और मुझे लगता है कि इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी बच्चों पर पड़ा है, जिसे हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते.
महामारी के दौरान सीखने का नुकसान
महामारी के चरम पर, अप्रैल 2020 में, राष्ट्रीय शैक्षिक बंद के कारण 200 देशों में लगभग 1.6 बिलियन छात्र प्रभावित हुए थे. ज़ाम्बिया में भी, स्कूल बंद होने से बच्चों के सीखने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा.
खासकर उन बच्चों पर जो पहले से ही वंचित थे, जैसे गरीबी में रहने वाले या ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे. ऑनलाइन शिक्षा एक समाधान के रूप में उभरी, लेकिन विकासशील देशों में नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर, कंप्यूटर और इंटरनेट एक्सेस की कमी ने इसे एक चुनौती बना दिया.
मुझे याद है, कई माता-पिता ने मुझे बताया कि कैसे उन्हें अपने बच्चों को पढ़ाने में मुश्किल हो रही थी, क्योंकि उनके पास स्मार्टफ़ोन या इंटरनेट नहीं था.
स्वास्थ्य और शिक्षा पर दोहरा बोझ
कोविड-19 के कारण न केवल सीखने का नुकसान हुआ, बल्कि बच्चों के सामाजिक जीवन और मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ा. बच्चों में चिंता और अवसाद के मामले बढ़े, और स्कूल बंद होने से उन्हें मिलने वाले भोजन जैसी कई बुनियादी सुविधाएँ भी प्रभावित हुईं.
ज़ाम्बिया में, महामारी के कारण शिक्षा बजट में भी कमी आई, जिससे स्थिति और बिगड़ गई. मुझे लगता है कि ऐसी चुनौतियों के समय में, सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को शिक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि बच्चे अपनी पढ़ाई और भविष्य की राह पर वापस लौट सकें.
सामुदायिक सहभागिता और सरकारी प्रयास
ज़ाम्बिया में प्राथमिक शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए सरकार, समुदायों और विभिन्न संगठनों के बीच सहयोग बहुत ज़रूरी है. जब सब मिलकर काम करते हैं, तो बड़े बदलाव आते हैं, ऐसा मैंने खुद महसूस किया है.
स्थानीय समुदायों की भूमिका
समुदायों की भागीदारी शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. Save the Children International जैसी संस्थाएँ सरकारों और समुदायों के साथ मिलकर प्रारंभिक बाल्यावस्था और निम्न बुनियादी शिक्षा तक पहुँच बढ़ाने पर काम कर रही हैं.
मुझे लगता है कि जब माता-पिता और स्थानीय नेता स्कूल के फैसलों में शामिल होते हैं, तो स्कूल का माहौल ज़्यादा बेहतर होता है और बच्चे ज़्यादा प्रेरित महसूस करते हैं.
सामुदायिक विद्यालय, जो अक्सर संसाधनों की कमी का सामना करते हैं, उन्हें भी शिक्षक प्रशिक्षण और सामग्री सहायता की ज़रूरत होती है. TTCSZ जैसे संगठन सामुदायिक स्कूल के शिक्षकों को प्रशिक्षित करके शिक्षा में सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं.
सरकारी नीतियाँ और सुधार
ज़ाम्बिया सरकार ने शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए कई पहल की हैं. 2023 में नया पाठ्यक्रम स्थापित किया गया है, और नए प्री-प्राइमरी और प्राथमिक शिक्षण सामग्री को इसके अनुरूप बनाया जा रहा है.
शिक्षकों की भर्ती में डेटा-आधारित दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है ताकि कक्षाओं में भीड़ कम हो सके. शिक्षक प्रशिक्षण में भी नए पाठ्यक्रम के कार्यान्वयन, मूल्यांकन-आधारित निर्देश और लिंग-उत्तरदायी शिक्षण पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है.
मुझे लगता है कि ये सुधार बहुत ज़रूरी हैं ताकि शिक्षा केवल कागज़ पर न हो, बल्कि असल में बच्चों के जीवन में बदलाव लाए.
| चुनौतियाँ | वर्तमान स्थिति | संभावित समाधान |
|---|---|---|
| प्रारंभिक शिक्षा तक पहुँच | 35% से कम बच्चों को ECE का अनुभव. | ECE में निवेश बढ़ाना, योग्य शिक्षकों की उपलब्धता. |
| शिक्षण की गुणवत्ता | ग्रेड 2 में केवल 4% छात्र पढ़ने में कुशल. | शिक्षक प्रशिक्षण, पाठ्यक्रम सुधार, मूल्यांकन-आधारित निर्देश. |
| योग्य शिक्षकों की कमी | ग्रामीण/शहरी दोनों में अप्रशिक्षित शिक्षक. | व्यापक शिक्षक नीति, निरंतर व्यावसायिक विकास. |
| सामग्री और बुनियादी ढाँचा | किताबों, सुविधाओं, इंटरनेट का अभाव. | शैक्षिक सामग्री की खरीद, डिजिटल बुनियादी ढाँचे का विस्तार. |
| डिजिटल डिवाइड | 47% आबादी डिजिटल रूप से शामिल नहीं. | ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट पहुँच बढ़ाना, डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम. |
भविष्य की दिशा: नवाचार और समावेश
ज़ाम्बिया में प्राथमिक शिक्षा का भविष्य नवाचार और समावेश पर बहुत निर्भर करता है. मुझे लगता है कि हमें सिर्फ़ समस्याओं को नहीं देखना चाहिए, बल्कि समाधानों पर भी ध्यान देना चाहिए, और वहाँ के लोग इसमें बहुत आगे बढ़ रहे हैं.
कौशल विकास पर ज़ोर
वर्तमान समय में केवल किताबी ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है. मुझे लगता है कि बच्चों को ऐसे कौशल सिखाना बहुत ज़रूरी है जो उन्हें वास्तविक दुनिया में सफल होने में मदद करें.
ज़ाम्बिया में कौशल विकास पर ज़ोर दिया जा रहा है, ताकि बच्चे केवल डिग्री लेकर न निकलें, बल्कि उनके पास ऐसे हुनर हों जिनसे वे रोज़गार पा सकें या अपना काम शुरू कर सकें.
निजी क्षेत्र की भागीदारी से ग्रामीण प्रतिभाओं को पहचानना और प्रशिक्षित करना बहुत फायदेमंद हो सकता है. यह न केवल बच्चों के लिए, बल्कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है.
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सतत विकास
ज़ाम्बिया शिक्षा गुणवत्ता बढ़ाने के लिए इंटर-कंट्री क्वालिटी नोड ऑन टीचिंग एंड लर्निंग (ICQN-TL) जैसी अंतर्राष्ट्रीय पहलों में भाग लेता है. ग्लोबल पार्टनरशिप फॉर एजुकेशन (GPE) और यूनिसेफ जैसे संगठन महामारी से उत्पन्न शैक्षिक संकट से निपटने और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए ज़ाम्बिया की मदद कर रहे हैं.
मुझे लगता है कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से नई तकनीकें, विशेषज्ञता और संसाधन मिलते हैं, जो देश की अपनी क्षमताओं को बढ़ाने में बहुत मदद करते हैं. यह सिर्फ़ वित्तीय सहायता नहीं है, बल्कि ज्ञान और अनुभव का आदान-प्रदान भी है जो ज़ाम्बिया को अपने बच्चों के लिए एक उज्जवल भविष्य बनाने में मदद करेगा.
वाह! नमस्ते दोस्तों, कैसे हैं आप सब? मुझे पता है आप सब ज़ाम्बिया की प्राथमिक शिक्षा के बारे में जानने के लिए उत्सुक हैं, और क्यों न हों!
शिक्षा ही तो है जो किसी भी समाज की दिशा तय करती है. मैंने अपनी रिसर्च में जो देखा और समझा है, वह वाकई आँखें खोलने वाला है. ज़ाम्बिया ने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत कुछ किया है, लेकिन चुनौतियाँ अभी भी बहुत हैं.
चलिए, बिना देर किए, हम इस यात्रा को शुरू करते हैं!
सबके लिए शिक्षा: राह आसान नहीं
ज़ाम्बिया में ‘शिक्षा सबके लिए’ नीति ने वाकई बहुत बदलाव लाए हैं. 2018 में प्राथमिक स्तर पर और 2021 में प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा (ECE) तथा माध्यमिक विद्यालयों तक इसे बढ़ाया गया.
राष्ट्रपति हाकइंडे हिचिलेमा इस दिशा में काफी प्रतिबद्ध हैं, और उनके प्रयासों को अक्टूबर 2023 में ADEA सम्मेलन में भी सराहा गया, जहाँ उन्हें फ़ाउंडेशनल लर्निंग के चैंपियन के रूप में नामित किया गया.
इन नीतियों का मक़सद शिक्षा तक पहुँच की बाधाओं को दूर करना है, ताकि हर बच्चे को सीखने का अधिकार मिले. मुझे याद है, एक बार मैं एक छोटे से गाँव में थी, जहाँ बच्चे कई किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल आते थे.
सरकार की कोशिशें रंग ला रही हैं, ज़्यादा बच्चे स्कूल पहुँच पा रहे हैं, पर अभी भी बहुत काम बाकी है. खासकर ग्रामीण इलाकों में, जहाँ स्कूल जाना अपने आप में एक संघर्ष होता है.
कई बार संसाधनों की कमी या घर की आर्थिक स्थिति भी बच्चों को स्कूल से दूर रखती है, और यह देखकर दिल को थोड़ा दुख तो होता ही है.
प्रारंभिक शिक्षा की नींव
मुझे लगता है, किसी भी इमारत की नींव जितनी मज़बूत होगी, इमारत उतनी ही ऊँची और टिकाऊ बनेगी. शिक्षा के साथ भी ऐसा ही है. प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा (Early Childhood Education – ECE) तक पहुँच अभी भी चिंताजनक रूप से कम है, जहाँ 35% से भी कम बच्चे ग्रेड 1 में प्रवेश करने से पहले औपचारिक प्री-प्राइमरी शिक्षा का अनुभव कर पाते हैं.
इसका सीधा असर यह होता है कि कई बच्चे प्राथमिक विद्यालय में देरी से दाखिला लेते हैं. सालों से इस क्षेत्र में निवेश की कमी रही है, खासकर ईसीई में, जो सबसे कम संसाधनों वाला क्षेत्र है.
0-6 वर्ष की आयु के बच्चों पर प्रति व्यक्ति खर्च बड़े बच्चों की तुलना में पाँच गुना कम है. मुझे लगता है कि इस पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि अगर शुरुआत ही कमज़ोर होगी, तो आगे चलकर बच्चों को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा, आप सोच सकते हैं.
गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा के लिए योग्य शिक्षकों की कमी, उच्च छात्र-शिक्षक अनुपात, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और शिक्षण सामग्री की कमी जैसी समस्याएँ आज भी बनी हुई हैं.
स्कूलों तक पहुँच और नामांकन में चुनौतियाँ

ज़ाम्बिया में प्राथमिक शिक्षा में नामांकन दर लगभग 91 प्रतिशत है, जो एक अच्छी संख्या है. लेकिन सिर्फ़ नामांकन ही काफ़ी नहीं है, बच्चों का स्कूल में टिके रहना और अच्छी शिक्षा प्राप्त करना भी उतना ही ज़रूरी है.
यूनिसेफ ने प्राथमिक से माध्यमिक विद्यालय में संक्रमण दरों में ठहराव के कई संभावित कारण बताए हैं, जिनमें स्कूल में सीटों की कमी, वित्तीय बाधाएँ, अपर्याप्त मासिक धर्म स्वच्छता सुविधाएँ, किशोरावस्था में गर्भधारण और बाल विवाह शामिल हैं.
मुझे याद है, एक लड़की से मेरी बात हुई थी, जो स्कूल छोड़ना चाहती थी क्योंकि उसके परिवार के पास फीस भरने के पैसे नहीं थे. ऐसे में सरकारी नीतियों और सामुदायिक सहयोग की भूमिका बहुत बढ़ जाती है.
खासकर ग्रामीण इलाकों में, जहाँ लड़कियों के लिए शिक्षा जारी रखना और भी मुश्किल हो जाता है. इन सब पर काम करना बहुत ज़रूरी है ताकि कोई भी बच्चा, खासकर लड़कियाँ, शिक्षा से वंचित न रहें.
शिक्षण की गुणवत्ता और शिक्षकों का संघर्ष
शिक्षा की गुणवत्ता एक ऐसा मुद्दा है जिस पर लगातार ध्यान देने की ज़रूरत है. मुझे खुद लगा है कि अगर कक्षा में पढ़ाने वाला शिक्षक योग्य और प्रेरित न हो, तो बच्चों का मन पढ़ाई में कैसे लगेगा?
ज़ाम्बिया में सीखने वाले छात्र अक्सर न्यूनतम पास अंक (40%) प्राप्त करने में संघर्ष करते हैं. ग्रेड 2 में, केवल 4% छात्र सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम पढ़ने की दक्षता हासिल कर पाते हैं, जो पहले 8% थी.
ग्रेड 5 के छात्रों के लिए, अंग्रेजी में औसत अंक 34.97% और गणित में 31.07% हैं, जिसमें केवल 8.7% और 5.4% छात्र ही वांछित दक्षता स्तर तक पहुँच पाते हैं.
ये आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ़ स्कूल खोलना काफ़ी नहीं है, बल्कि वहाँ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना भी उतना ही ज़रूरी है. मुझे लगता है कि शिक्षकों की ट्रेनिंग और उन्हें लगातार सहायता देना बहुत ज़रूरी है.
योग्य शिक्षकों की कमी: एक बड़ी समस्या
जहाँ तक शिक्षकों की बात है, ज़ाम्बिया के शिक्षा मंत्री डगलस स्यकालिया ने स्वीकार किया है कि शिक्षकों की कमी एक बड़ी चुनौती है. ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के प्राथमिक विद्यालयों में बड़ी संख्या में शिक्षक या तो पूरी तरह से प्रशिक्षित नहीं हैं या योग्य नहीं हैं.
इसका असर शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ता है, क्योंकि कई बार शिक्षक उन विषयों को भी प्रभावी ढंग से नहीं पढ़ा पाते, जिन्हें वे खुद पूरी तरह से नहीं समझते. 2006 की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि बेसिक स्तर (ग्रेड 1-7) पर शिक्षकों की आपूर्ति ज़रूरत से ज़्यादा थी, लेकिन अपर बेसिक (ग्रेड 8-9) और हाई स्कूल स्तर पर शिक्षकों की भारी कमी थी.
मुझे लगता है, यह सिर्फ संख्या का खेल नहीं है, बल्कि सही जगह पर सही योग्यता वाले शिक्षकों का होना ज़रूरी है. सरकार 2022 में यूनेस्को के समर्थन से एक व्यापक शिक्षक नीति विकसित करने की दिशा में काम कर रही है ताकि योग्य शिक्षकों को आकर्षित किया जा सके, विकसित किया जा सके और उन्हें बनाए रखा जा सके.
सीखने की सामग्री और बुनियादी ढाँचे का अभाव
ज़ाम्बिया के अधिकांश स्कूलों में बच्चों को शिक्षा के लिए पर्याप्त शैक्षिक सामग्री, जैसे किताबें, रूलर, नक्शे और चार्ट उपलब्ध नहीं हैं. कारमोडी (2004) के अनुसार, “संसाधनों के बिना शिक्षा भविष्य के बिना शिक्षा के समान है.” यह बात मुझे बहुत सही लगती है.
मैंने खुद देखा है कि जब बच्चों के पास अच्छी किताबें या सीखने की सामग्री नहीं होती, तो वे कैसे संघर्ष करते हैं. ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में ज़ाम्बिया की शिक्षा प्रणाली के स्तर में सुधार के लिए पुस्तकों और अन्य शैक्षिक सामग्रियों की खरीद में सुधार करने की आवश्यकता है.
इसके अलावा, स्कूलों में पर्याप्त बुनियादी ढाँचे की कमी भी एक बड़ी समस्या है. कई बच्चे स्कूल नहीं जा पाते क्योंकि स्कूल बहुत दूर होते हैं. स्वच्छता सुविधाओं, बिजली और इंटरनेट जैसी बुनियादी ज़रूरतों का अभाव भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में बाधा डालता है.
डिजिटल क्रांति और भविष्य की उम्मीद
अभी के दौर में, डिजिटल शिक्षा एक बहुत बड़ी उम्मीद की किरण बनकर उभरी है. खासकर कोविड-19 महामारी के बाद, जब स्कूलों को बंद करना पड़ा, तो ऑनलाइन शिक्षा का महत्व सबने समझा.
ज़ाम्बिया ने भी डिजिटल भविष्य की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. 2024 तक, लगभग 11.4 मिलियन लोग सक्रिय इंटरनेट ग्राहक बन गए हैं, और मोबाइल ब्रॉडबैंड नेटवर्क के विस्तार तथा इंटरनेट सेवाओं की बढ़ती सामर्थ्य ने इसमें प्रमुख भूमिका निभाई है.
मुझे लगता है, यह बहुत ज़रूरी है कि हम इस डिजिटल बदलाव को गले लगाएँ, लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित करें कि कोई बच्चा पीछे न छूटे.
डिजिटल शिक्षा के बढ़ते कदम
शिक्षा मंत्रालय ने यूनेस्को, यूनिसेफ और माइक्रोसॉफ्ट के सहयोग से ‘डिजिटल लर्निंग पासपोर्ट’ प्लेटफॉर्म विकसित किया है, जो ज़ाम्बिया में शिक्षा को, खासकर दूरदराज के इलाकों के छात्रों के लिए, काफी बेहतर बना रहा है.
यह प्लेटफॉर्म इंटरैक्टिव पाठ, ऑडियो-वीडियो सामग्री और डिजिटलकृत पाठ्यक्रम-आधारित सामग्री की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करता है. इसके अलावा, ‘डिजिटल करिकुलम कंटेंट डेवलपमेंट’ परियोजना भी चल रही है, जिसका उद्देश्य मौजूदा माध्यमिक विद्यालय शिक्षण सामग्री को डिजिटाइज़ करके शिक्षा सामग्री तक पहुँच बढ़ाना है.
मेरा मानना है कि ये पहलें बच्चों के लिए सीखने को ज़्यादा मज़ेदार और सुलभ बना सकती हैं. एडटेक (EdTech) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को भी शिक्षा के भविष्य के केंद्रीय स्तंभों के रूप में देखा जा रहा है, जिससे शिक्षकों का बोझ कम हो और छात्रों को व्यक्तिगत सहायता मिल सके.
ग्रामीण-शहरी डिजिटल विभाजन को पाटना
हालांकि, डिजिटल डिवाइड एक बड़ी चुनौती है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में और महिलाओं व लड़कियों को असमान रूप से प्रभावित करता है. 2023 की शुरुआत में, ज़ाम्बिया में लगभग 47% आबादी डिजिटल रूप से शामिल नहीं थी, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में 56% और महिलाओं में 34% का डिजिटल विभाजन था.
इंटरनेट तक पहुँच की कमी, उपकरणों का अभाव और डिजिटल साक्षरता की कमी, ग्रामीण बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा के अवसरों से वंचित कर सकती है. मुझे लगता है कि सरकार और निजी संगठनों को मिलकर काम करना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि डिजिटल शिक्षा का लाभ सभी तक पहुँचे, न कि केवल शहरों तक सीमित रहे.
‘वीवीओबी ज़ाम्बिया’ जैसी संस्थाएँ ‘डिजिटल स्कूल प्रोजेक्ट’ के माध्यम से स्कूल छोड़ चुके किशोरों को शिक्षा तक पहुँच प्रदान करने में मदद कर रही हैं, जो टेक्नोलॉजी-सक्षम मॉडल का उपयोग करके ग्रेड 7 की परीक्षाओं की तैयारी कराते हैं.
कोविड-19 का शिक्षा पर गहरा असर
कोविड-19 महामारी ने दुनिया भर की शिक्षा प्रणालियों पर गहरा प्रभाव डाला, और ज़ाम्बिया भी इससे अछूता नहीं रहा. स्कूलों के बंद होने से बच्चों की पढ़ाई में भारी व्यवधान आया, और मुझे लगता है कि इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी बच्चों पर पड़ा है, जिसे हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते.
महामारी के दौरान सीखने का नुकसान
महामारी के चरम पर, अप्रैल 2020 में, राष्ट्रीय शैक्षिक बंद के कारण 200 देशों में लगभग 1.6 बिलियन छात्र प्रभावित हुए थे. ज़ाम्बिया में भी, स्कूल बंद होने से बच्चों के सीखने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा.
खासकर उन बच्चों पर जो पहले से ही वंचित थे, जैसे गरीबी में रहने वाले या ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे. ऑनलाइन शिक्षा एक समाधान के रूप में उभरी, लेकिन विकासशील देशों में नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर, कंप्यूटर और इंटरनेट एक्सेस की कमी ने इसे एक चुनौती बना दिया.
मुझे याद है, कई माता-पिता ने मुझे बताया कि कैसे उन्हें अपने बच्चों को पढ़ाने में मुश्किल हो रही थी, क्योंकि उनके पास स्मार्टफ़ोन या इंटरनेट नहीं था.
स्वास्थ्य और शिक्षा पर दोहरा बोझ
कोविड-19 के कारण न केवल सीखने का नुकसान हुआ, बल्कि बच्चों के सामाजिक जीवन और मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ा. बच्चों में चिंता और अवसाद के मामले बढ़े, और स्कूल बंद होने से उन्हें मिलने वाले भोजन जैसी कई बुनियादी सुविधाएँ भी प्रभावित हुईं.
ज़ाम्बिया में, महामारी के कारण शिक्षा बजट में भी कमी आई, जिससे स्थिति और बिगड़ गई. मुझे लगता है कि ऐसी चुनौतियों के समय में, सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को शिक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि बच्चे अपनी पढ़ाई और भविष्य की राह पर वापस लौट सकें.
सामुदायिक सहभागिता और सरकारी प्रयास
ज़ाम्बिया में प्राथमिक शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए सरकार, समुदायों और विभिन्न संगठनों के बीच सहयोग बहुत ज़रूरी है. जब सब मिलकर काम करते हैं, तो बड़े बदलाव आते हैं, ऐसा मैंने खुद महसूस किया है.
स्थानीय समुदायों की भूमिका
समुदायों की भागीदारी शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. Save the Children International जैसी संस्थाएँ सरकारों और समुदायों के साथ मिलकर प्रारंभिक बाल्यावस्था और निम्न बुनियादी शिक्षा तक पहुँच बढ़ाने पर काम कर रही हैं.
मुझे लगता है कि जब माता-पिता और स्थानीय नेता स्कूल के फैसलों में शामिल होते हैं, तो स्कूल का माहौल ज़्यादा बेहतर होता है और बच्चे ज़्यादा प्रेरित महसूस करते हैं.
सामुदायिक विद्यालय, जो अक्सर संसाधनों की कमी का सामना करते हैं, उन्हें भी शिक्षक प्रशिक्षण और सामग्री सहायता की ज़रूरत होती है. TTCSZ जैसे संगठन सामुदायिक स्कूल के शिक्षकों को प्रशिक्षित करके शिक्षा में सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं.
सरकारी नीतियाँ और सुधार
ज़ाम्बिया सरकार ने शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए कई पहल की हैं. 2023 में नया पाठ्यक्रम स्थापित किया गया है, और नए प्री-प्राइमरी और प्राथमिक शिक्षण सामग्री को इसके अनुरूप बनाया जा रहा है.
शिक्षकों की भर्ती में डेटा-आधारित दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है ताकि कक्षाओं में भीड़ कम हो सके. शिक्षक प्रशिक्षण में भी नए पाठ्यक्रम के कार्यान्वयन, मूल्यांकन-आधारित निर्देश और लिंग-उत्तरदायी शिक्षण पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है.
मुझे लगता है कि ये सुधार बहुत ज़रूरी हैं ताकि शिक्षा केवल कागज़ पर न हो, बल्कि असल में बच्चों के जीवन में बदलाव लाए.
| चुनौतियाँ | वर्तमान स्थिति | संभावित समाधान |
|---|---|---|
| प्रारंभिक शिक्षा तक पहुँच | 35% से कम बच्चों को ECE का अनुभव. | ECE में निवेश बढ़ाना, योग्य शिक्षकों की उपलब्धता. |
| शिक्षण की गुणवत्ता | ग्रेड 2 में केवल 4% छात्र पढ़ने में कुशल. | शिक्षक प्रशिक्षण, पाठ्यक्रम सुधार, मूल्यांकन-आधारित निर्देश. |
| योग्य शिक्षकों की कमी | ग्रामीण/शहरी दोनों में अप्रशिक्षित शिक्षक. | व्यापक शिक्षक नीति, निरंतर व्यावसायिक विकास. |
| सामग्री और बुनियादी ढाँचा | किताबों, सुविधाओं, इंटरनेट का अभाव. | शैक्षिक सामग्री की खरीद, डिजिटल बुनियादी ढाँचे का विस्तार. |
| डिजिटल डिवाइड | 47% आबादी डिजिटल रूप से शामिल नहीं. | ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट पहुँच बढ़ाना, डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम. |
भविष्य की दिशा: नवाचार और समावेश
ज़ाम्बिया में प्राथमिक शिक्षा का भविष्य नवाचार और समावेश पर बहुत निर्भर करता है. मुझे लगता है कि हमें सिर्फ़ समस्याओं को नहीं देखना चाहिए, बल्कि समाधानों पर भी ध्यान देना चाहिए, और वहाँ के लोग इसमें बहुत आगे बढ़ रहे हैं.
कौशल विकास पर ज़ोर
वर्तमान समय में केवल किताबी ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है. मुझे लगता है कि बच्चों को ऐसे कौशल सिखाना बहुत ज़रूरी है जो उन्हें वास्तविक दुनिया में सफल होने में मदद करें.
ज़ाम्बिया में कौशल विकास पर ज़ोर दिया जा रहा है, ताकि बच्चे केवल डिग्री लेकर न निकलें, बल्कि उनके पास ऐसे हुनर हों जिनसे वे रोज़गार पा सकें या अपना काम शुरू कर सकें.
निजी क्षेत्र की भागीदारी से ग्रामीण प्रतिभाओं को पहचानना और प्रशिक्षित करना बहुत फायदेमंद हो सकता है. यह न केवल बच्चों के लिए, बल्कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है.
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सतत विकास
ज़ाम्बिया शिक्षा गुणवत्ता बढ़ाने के लिए इंटर-कंट्री क्वालिटी नोड ऑन टीचिंग एंड लर्निंग (ICQN-TL) जैसी अंतर्राष्ट्रीय पहलों में भाग लेता है. ग्लोबल पार्टनरशिप फॉर एजुकेशन (GPE) और यूनिसेफ जैसे संगठन महामारी से उत्पन्न शैक्षिक संकट से निपटने और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए ज़ाम्बिया की मदद कर रहे हैं.
मुझे लगता है कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से नई तकनीकें, विशेषज्ञता और संसाधन मिलते हैं, जो देश की अपनी क्षमताओं को बढ़ाने में बहुत मदद करते हैं. यह सिर्फ़ वित्तीय सहायता नहीं है, बल्कि ज्ञान और अनुभव का आदान-प्रदान भी है जो ज़ाम्बिया को अपने बच्चों के लिए एक उज्जवल भविष्य बनाने में मदद करेगा.
글을 마치며
तो दोस्तों, ज़ाम्बिया की प्राथमिक शिक्षा की यह यात्रा वाकई कई पहलुओं से भरी है. चुनौतियों और उम्मीदों के बीच, एक बात तो तय है कि शिक्षा ही सुनहरे भविष्य की कुंजी है. मुझे पूरा विश्वास है कि ज़ाम्बिया सरकार और समुदाय मिलकर बच्चों के लिए एक बेहतर शैक्षिक माहौल बनाने में सफल होंगे. आखिर, हर बच्चे का सपना पूरा होना चाहिए, है ना?
알아두면 쓸모 있는 정보
1. शिक्षा में अभिभावकों की भूमिका: मुझे ऐसा लगता है कि बच्चों की शिक्षा में माता-पिता की भागीदारी सोने पर सुहागा का काम करती है. जब अभिभावक स्कूल की गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल होते हैं, बच्चों के होमवर्क में मदद करते हैं और शिक्षकों से नियमित संपर्क रखते हैं, तो बच्चे ज़्यादा प्रेरित महसूस करते हैं. मैंने कई जगह देखा है कि जिन बच्चों के माता-पिता उनकी पढ़ाई में दिलचस्पी लेते हैं, वे न सिर्फ स्कूल में बेहतर प्रदर्शन करते हैं, बल्कि उनमें आत्मविश्वास भी ज़्यादा होता है. यह सिर्फ पढ़ाई की बात नहीं है, बल्कि बच्चों के समग्र विकास के लिए भी बहुत ज़रूरी है. सोचिए, जब बच्चा जानता है कि उसके माता-पिता उसके साथ हैं, तो उसे कितनी हिम्मत मिलती है!
2. डिजिटल साक्षरता का महत्व: आजकल की दुनिया में डिजिटल साक्षरता किसी भी बच्चे के भविष्य के लिए बहुत ज़रूरी है. स्मार्टफोन और इंटरनेट की पहुँच बढ़ने के साथ-साथ बच्चों को सिर्फ टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना नहीं, बल्कि उसे सुरक्षित और सही तरीके से उपयोग करना भी सिखाना चाहिए. मैंने खुद देखा है कि कैसे एक छोटा सा टैबलेट या इंटरनेट कनेक्शन बच्चों को दुनिया भर की जानकारी से जोड़ सकता है. सरकारों और समुदायों को मिलकर ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल पहुँच बढ़ाने और बच्चों को डिजिटल स्किल्स सिखाने पर काम करना चाहिए. यह उन्हें नए ज़माने के लिए तैयार करेगा और शिक्षा के नए रास्ते खोलेगा.
3. समुदाय आधारित शिक्षा पहलें: बड़े बदलाव अक्सर छोटे, स्थानीय प्रयासों से शुरू होते हैं. कई बार सरकारी स्कूल तक नहीं पहुँच पाने वाले बच्चों के लिए समुदाय आधारित शिक्षा कार्यक्रम बहुत अहम होते हैं. मुझे याद है, एक बार मैं एक ऐसे गाँव में थी जहाँ स्थानीय लोगों ने मिलकर एक छोटा सा स्कूल चलाया था, और वहाँ के बच्चे बहुत खुशी से पढ़ने आते थे. ऐसे कार्यक्रम न केवल शिक्षा तक पहुँच बढ़ाते हैं, बल्कि स्थानीय समस्याओं को ध्यान में रखते हुए समाधान भी प्रदान करते हैं. समुदायों को ऐसे प्रयासों का समर्थन करना चाहिए, क्योंकि यह बच्चों के भविष्य के लिए सबसे अच्छी निवेश है.
4. शिक्षकों का सम्मान और सहायता: शिक्षक हमारे बच्चों के भविष्य के निर्माता होते हैं, और मुझे लगता है कि उनका सम्मान और उनकी सहायता करना हमारा कर्तव्य है. योग्य और प्रेरित शिक्षक ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे सकते हैं. मैंने देखा है कि जब शिक्षकों को सही प्रशिक्षण, पर्याप्त संसाधन और अच्छा माहौल मिलता है, तो उनका काम करने का जुनून कई गुना बढ़ जाता है. सरकार और समाज दोनों को शिक्षकों के व्यावसायिक विकास में निवेश करना चाहिए और उन्हें अपनी चुनौतियों का सामना करने में मदद करनी चाहिए. एक खुश और संतुष्ट शिक्षक ही अपने छात्रों को सर्वोत्तम शिक्षा दे सकता है.
5. स्वास्थ्य और शिक्षा का गहरा रिश्ता: यह शायद सुनने में थोड़ा अलग लगे, लेकिन बच्चों का स्वास्थ्य उनकी शिक्षा पर सीधा असर डालता है. एक स्वस्थ बच्चा ही अच्छी तरह से सीख सकता है और स्कूल में नियमित रह सकता है. कुपोषण, बीमारियों और स्वच्छता सुविधाओं की कमी बच्चों को स्कूल से दूर रखती है. मैंने कई बार देखा है कि छोटे बच्चे जब बीमार पड़ते हैं, तो उनकी पढ़ाई कितनी पिछड़ जाती है. इसलिए, स्कूलों में स्वास्थ्य और स्वच्छता सुविधाओं में सुधार करना, पौष्टिक भोजन कार्यक्रम चलाना और स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करना बहुत ज़रूरी है. स्वस्थ बच्चे, बेहतर भविष्य की नींव होते हैं, और यह बात हमें कभी नहीं भूलनी चाहिए.
महत्वपूर्ण बातें
ज़ाम्बिया की प्राथमिक शिक्षा कई चुनौतियों का सामना कर रही है, खासकर प्रारंभिक शिक्षा तक सीमित पहुँच, शिक्षण की गुणवत्ता में कमी और योग्य शिक्षकों का अभाव. हालांकि, सरकार और अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के प्रयासों से डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है और कौशल विकास पर ज़ोर दिया जा रहा है. सामुदायिक सहभागिता और सरकारी नीतियाँ सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं, लेकिन डिजिटल विभाजन को पाटना और सभी बच्चों के लिए समान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना अभी भी एक बड़ी प्राथमिकता है. मुझे लगता है कि इन सभी पहलुओं पर मिलकर काम करने से ही ज़ाम्बिया के बच्चों को एक उज्जवल भविष्य मिल पाएगा.
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ) 📖
प्र: ज़ाम्बिया में प्राथमिक शिक्षा को बेहतर बनाने की राह में आज भी कौन-कौन सी बड़ी चुनौतियाँ हैं, और सरकार क्या कर रही है?
उ: अरे दोस्तों, ज़ाम्बिया की प्राथमिक शिक्षा प्रणाली में कई ऐसी चुनौतियाँ हैं जो बच्चों के भविष्य को सचमुच प्रभावित करती हैं। मैंने अपनी रिसर्च में पाया कि सबसे बड़ी समस्या है योग्य शिक्षकों की कमी, खासकर ग्रामीण इलाकों में। सोचिए, अगर शिक्षक ही पूरी तरह प्रशिक्षित न हों, तो बच्चों को अच्छी शिक्षा कैसे मिल पाएगी?
साथ ही, स्कूलों में पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर का न होना, जैसे कि भीड़भाड़ वाली कक्षाएँ, पुरानी किताबें और ज़रूरी शिक्षण सामग्री की कमी, एक और बड़ी चुनौती है। मुझे याद है, एक बार मैंने एक डॉक्यूमेंट्री में देखा था कि बच्चे मीलों पैदल चलकर स्कूल जाते हैं, और वहाँ भी उन्हें ठीक से बैठने की जगह नहीं मिलती। इसके अलावा, कई परिवारों के लिए शिक्षा का खर्च उठाना आज भी मुश्किल है, भले ही 2022 से प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को सरकारी स्कूलों में मुफ्त कर दिया गया है। मुझे तो लगता है कि वित्तीय बाधाएँ, लड़कियों के लिए शिक्षा तक पहुँच में लैंगिक असमानता (जैसे बाल विवाह या किशोरावस्था में गर्भावस्था) और खराब स्वच्छता सुविधाएँ भी बड़े मुद्दे हैं। लेकिन अच्छी बात यह है कि ज़ाम्बियाई सरकार इन चुनौतियों से निपटने के लिए वाकई कड़ी मेहनत कर रही है। उन्होंने ‘सभी के लिए शिक्षा’ नीति (Education-For-All Policy) लागू की है, और 2022-2023 में 40,000 से अधिक शिक्षकों की भर्ती की है। वे स्कूल इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने और कक्षाओं के निर्माण में भी निवेश कर रहे हैं, जो एक बहुत बड़ा कदम है।
प्र: कोविड-19 महामारी ने ज़ाम्बिया की प्राथमिक शिक्षा पर क्या असर डाला और क्या इससे कुछ नया सीखने को मिला?
उ: सच कहूँ तो, कोविड-19 महामारी ने दुनिया भर में शिक्षा को हिलाकर रख दिया और ज़ाम्बिया भी इससे अछूता नहीं रहा। मुझे याद है, जब अचानक स्कूल बंद होने लगे, तो बच्चों की पढ़ाई पर कितना बुरा असर पड़ा था। 2019 में जहाँ ग्रेड 7 में प्राथमिक स्कूल पूरा करने की दर 97% थी, वहीं 2020 में यह घटकर 86.4% हो गई। यह सिर्फ़ आँकड़े नहीं हैं, बल्कि हज़ारों बच्चों के सीखने के अवसर का नुकसान था। सबसे बड़ी चुनौती थी दूरस्थ शिक्षा (distance learning) की कमी। हमारे यहाँ तो ऑनलाइन क्लासेज़ आम हो गईं, पर ज़ाम्बिया के ग्रामीण इलाकों में, जहाँ बिजली और इंटरनेट की सुविधा नहीं है, वहाँ रेडियो या टीवी के माध्यम से भी पढ़ाई मुश्किल हो गई। एक शिक्षक के तौर पर, मुझे लगता है कि यह शिक्षकों के लिए भी एक बड़ी परीक्षा थी, क्योंकि उन्हें अचानक नई तकनीक सीखनी पड़ी और कई बार उनके पास ज़रूरी प्रशिक्षण और सहायता भी नहीं थी। महामारी ने सीखने की खाई को और गहरा कर दिया, खासकर गरीब और वंचित बच्चों के लिए। लेकिन हाँ, इस संकट से कुछ अहम बातें सीखने को भी मिलीं। सबसे ज़रूरी बात यह कि हमें डिजिटल तकनीक के महत्व को समझा। इसने हमें लचीलापन, अनुकूलन क्षमता और सभी हितधारकों के बीच सहयोग की ज़रूरत सिखाई। ज़ाम्बियाई सरकार और यूनिसेफ जैसे संगठनों ने “लर्निंग पासपोर्ट ज़ाम्बिया” जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म भी शुरू किए हैं, ताकि बच्चे कभी भी, कहीं भी पढ़ाई जारी रख सकें।
प्र: ज़ाम्बिया में प्राथमिक शिक्षा के भविष्य के लिए डिजिटल शिक्षा और कौशल विकास कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं?
उ: मुझे तो पूरा विश्वास है कि ज़ाम्बिया में प्राथमिक शिक्षा के भविष्य के लिए डिजिटल शिक्षा और कौशल विकास एक गेम-चेंजर साबित हो सकते हैं! आजकल की दुनिया में, जहाँ सब कुछ इतनी तेज़ी से बदल रहा है, सिर्फ़ किताबी ज्ञान काफ़ी नहीं है। डिजिटल शिक्षा बच्चों को नए ज़माने के कौशल सिखाने का सबसे अच्छा तरीका है। सोचिए, अगर हर बच्चे के पास टैबलेट पर पढ़ाई का एक्सेस हो, जैसा कि “डिजिटल स्कूल प्रोजेक्ट” में किया जा रहा है। यह न केवल सीखने की सामग्री को ज़्यादा सुलभ बनाएगा, बल्कि बच्चों को स्वयं-गति (self-paced) से सीखने का मौका भी देगा। शिक्षा मंत्री ने खुद कहा है कि मंत्रालय शैक्षिक प्रौद्योगिकी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को शिक्षा के भविष्य के केंद्रीय स्तंभ के रूप में देख रहा है। मुझे लगता है कि इससे शिक्षकों का बोझ कम होगा और वे छात्रों की व्यक्तिगत ज़रूरतों पर ज़्यादा ध्यान दे पाएंगे। ज़ाम्बिया की सरकार “डिजिटल पाठ्यक्रम सामग्री विकास” परियोजना पर काम कर रही है ताकि शिक्षण सामग्री को डिजिटल किया जा सके। इसके अलावा, कौशल विकास पर ज़ोर देना बेहद ज़रूरी है ताकि बच्चे सिर्फ़ डिग्री लेकर न निकलें, बल्कि उनके पास ऐसे हुनर हों जो उन्हें रोज़गार दिला सकें और देश के विकास में योगदान दे सकें। निजी क्षेत्र की भागीदारी और अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी इस दिशा में बहुत मदद कर सकते हैं, जिससे शिक्षा में निवेश बढ़े और नए अवसर पैदा हों। मुझे तो लगता है कि डिजिटल साक्षरता और 21वीं सदी के कौशल, ज़ाम्बिया के बच्चों को एक उज्जवल भविष्य की ओर ले जाने का सबसे सीधा रास्ता हैं।






